Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 217
________________ चौतीसवां बोल उपधिप्रत्याख्यान तेतीसर्वे बोल मे संभोग के प्रत्याख्यान के विषय में विचार किया गया । सभोग का त्याग करने से आलम्बन का त्याग भी करना पडता है । मालम्बन का त्याग करना साधारण आदनी के लिए सरल काम नहीं है । शक्तिसाली महात्मा ही आलम्बन का त्याग कर सकते हैं । जिनमें सभोग का त्याग करने की शक्ति होती है वे सभोग का त्याग कर देते हैं और साथ ही साथ उपधि (उपकरण) को भी स्याग कर देते हैं। इस कारण अब गौतम स्वामी उपधि के त्याग के विषय मे भगवान् से प्रश्न करते हैं - मूलपाठ प्रश्न - उवहिपच्चक्खाणणं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमंथं जणयेइ, निरुवंहिए णं जीवे निक्कखे उवहिमन्तरेण य न सकिलिस्सइ ॥३४॥ शब्दार्थ प्रश्न-भगवन् । उपधि को त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है ?

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