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चौतीसवां बोल-२१३
अथवा गृहस्थों के पात्र में जोमते होगे तो वृद्ध तथा रोगो आदि सतों के लिए भिक्षा किस प्रकार और कहा से लाओगे? कदाचित् यह कहो कि हम गृहस्थो के घर जोमेगे और वृद्ध तथा रोगो साधुओ को सेवा गृहस्थ करेंगे, तो ऐसा करने मे अयतना होगी और सयम मे बाधा आएगी । अतएव सयम पालन के लिये पात्र भी उपकारी हैं ।
जो भोजन किया जाता है वह शरीर मे रसभाग ओर खलभाग मे परिणत होता है । खलभाग का-जो मलमूत्र रूप होता है-त्याग करना हो पडता है । मलमूत्र का त्याग दश बोलो का ध्यान रखकर करना चाहिए ।
' साधु-क्रिया से अनभिज्ञ कुछ लोगो का कहना है कि साधु मल को बिखेरते हैं, परन्तु यह कथन भ्रामक और मिथ्या है । ऐसा करने से तो साधु को प्रायश्चित लगता है । मलमूत्र का त्याग करने मे स.धुओ को विवेक तो रखना ही पडता है, परन्तु मलमूत्र का विसर्जन करते समय साधु ऐसी कोई क्रिया नहीं करते कि उन्हे मलमूत्र का स्पर्श करना पडता है ।
यहाँ कोई यह पूछ सकता है कि यह तो साधुओ के आचार-विचार को बात हुई, परन्तु शास्त्र मे गृहस्थो के लिए भी कोई धर्म बताया है या नही, और उनके लिए किसी प्रकार का विधि-विधान किया गया है या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शास्त्र मे गृहस्थो का धर्म न वतलाया जाये यह कैसे सभव है ? क्योकि साधुग्रो का धर्म गृहस्थो के धर्म पर ही आश्रित है । इसीलिए उववाई सूत्र मे कहा है