Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 218
________________ २१०-सम्यक्त्वपराक्रम (३) उत्तर- हे गौतम । उपधि का त्याग करने से जोव उपकरण धरने-उठाने को चिन्ता से मुक्त हो जाता है और उपधिरहित जीव निस्पृही ( स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन मे निश्चिन्त रहने वाला) होकर उपधि के अभाव मे शारीरिक या मानसिक क्लेश अनुभव नहीं करता । व्याख्यान उपधि के प्रत्याख्यान से जीव को होने वाले लाभों पर विचार करने से पहले उपधि क्या है, इस विषय पर विचार कर लेना आवश्यक प्रतीत होता है। उपधि का अर्थ है- उपकरण या साधन । यह उपकरण या साधन दो प्रकार के हैं। एक साधन तो सद्गति मे ले जाने वाला होता है और दूसरा अधोगति मे ले जाने वाला । उपधि की व्याख्या करते हुए कहा गया है-'उपधीयते इति उपधि. ।' अर्थात जिससे उपधि हो वह उपधि कहलाती है। इस प्रकार कोई कोई उपधि दुर्गति मे ले जाने वाली और कोई सद्गति मे ले जाने वाली होती है । दुर्गति मे ले जाने वाली उपधि मे धन-धान्य आदि परिग्रह का समावेश होता है और सद्गति मे पहुचाने वाली उपधि मे उन चीजो का समावेश होता है, जो सयम मे स्थिर करने वाली हैं । उपधि तो दोनो ही हैं परन्तु सर्वप्रथम अशुभ का ही त्याग किया जाता है, शुभ का नही । जिन्होने सयम धारण किया है वह दुर्गति मे ले जाने वाली धनधान्य आदि उपधि का तो पहले ही त्याग कर डालते हैं, उन्हे सिर्फ सयम मे स्थिर रखने वाली उपधि का त्याग करना शेष रहता है। शास्त्रकार कहते हैं. अगर किसी मे शक्ति हो तो सयम मे स्थित करने वाली उपधि

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