Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 204
________________ १९६-सम्यक्त्वपरीक्रम (३) - - - कराने मे कम पाप होता है और 'सुख मिलता है, यह मान्यता भ्रमपूर्ण है। अपने हाथ से काम करने मे कम पाप लगता है या दूसरे से कराने मे, इस बात का अगर बुद्धि पूर्वक विचार करोगे तो तुम्हे विश्वास हो जायेगा कि स्वतत्रता में सुख है और परतन्त्रता मे दु.ख है। पाप परतन्त्र दशा मे अधिक होता है और स्वतन्त्रदशा में कम होता है। द्रौपदी ने सत्यभामा को वशीकरण मन्त्र और उस मन्त्र को सारने के उपाय बतलाते हुए कहा-दूसरों के वश में रहना सच्चा वशीकरण है और पति-सेवा मे सुख मानना, पंति की आज्ञा मानना तथा कर्त्तव्यशील . और धर्मपरायण, होकर रहना मन्त्र साधने के उपाय हैं। अगर तुम इस मत्र की साधना करोगे तो तुम भी. सब को अपने वश में कर सकोगे । यह मन्त्र तो विश्व को वश मे करने वाला वशीकरण मन्त्र है। । कहने का आशय यह है कि जो पुरुष स्वावलम्बी बनता है और अपना काम, आप करके दूसरो का भी काम कर लेता है, वहीं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है। दूसरो को गुल म रखने वाला स्वय गुलाम बनता है। . __ . कहते हैं, भारत का पहला लॉर्ड क्लाइव जब ढाका के नवाब से मिलने गया तो नवाब ने अपने गुलामो को सुन्दर वस्त्र पहना कर एक कतार में खड़ा किया था और गुलामो को नीचे झुकाकर सलामी दी थी। नवाब जब क्लाइव से मिला तो उसने क्लाइव से पूछा- तुम अपने बादशाह को बहुत बडा- कहते हो तो उसके पास कितने गुलाम हैं ? लॉर्ड ने उत्तर दिया हमारे बादशाह के पास एक भी

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