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तेतीसर्वा बोल-२०१
में आग लग गई । कुछ दयालु लोग पागलों को बाहर निकालने के लिए दौड़े आये। मगर पागल तो पाग को देखकर उलटे अानन्द मनाने लये । कहने लगे-यहाँ और दिन तो एकदो ही दीपक जलाये जाते थे पर आज हजारों दीपक जलाये जा रहे है। ऐसे प्रकाशमय स्थान से हमे बाहर क्यो निकाला जा रहा है ?
अगर तुम वहाँ होते तो यही कहते कि यह पागल कितने मूर्ख हैं कि विनाश को भी प्रकाश मान रहे हैं । आह 1 लोगो की दशा कितनी दयनीय है।
पागल भ्रम मे फंसे होने के कारण ही विनाश में आनन्द मान रहे हैं । इसी प्रकार आज की जनता भी ऊपरी भपके के भ्रम मे पडी है और इसी कारण लोग ऊपरी भपका बढ़ाने में ही आनन्द मान रहे है । ऐसे लोगो से ज्ञानीजन कहते हैं । इस ऊपरी भपके के भ्रम से बाहर निकलो अन्यथा इस भपके के भड़के मे ही भस्मीभूत हो जाओगे ।-ज्ञ नीजन तो इस प्रकार चेतावनी देकर दिखावटी फैशन के चक्कर में से लोगो को निकालने का प्रयत्न करते हैं, मगर शौकीन लोग ज्ञानियो की चेतावनी को अवगणना करते हैं । इस अवगणना के फलस्वरूप उन्हें दुख ही सहन करना पडता है; क्योकि फैशन बढने से परावीनता बढ़ती है और पराधीनता मे दु.ख है ।
स्वामी विवेकानन्द यूरोप-अमेरिका आदि देशो में धर्मप्रचार करके जब भारत लौटे, तो उन्होने अपने अनुभव बतलाते हुये एक भाषण में कहा था-इस समय सारा यूरोप ज्वालामुखी के शिखर पर बैठा है । यह नहीं कहा जा