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२०० - सम्यक्त्वपराक्रम (३)
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दूसरी है कि आज लोग परवश हो जाने के कारण तत्काल पराधीनता का त्याग नही कर सकते, फिर भी स्वतंत्रता को भूल तो नही जाना चाहिए । स्वाधीनता का आदर्श तो अपनी नजर के आगे रखना ही चाहिए । जो लोग पराधी - नता को ही सर्वस्व मान बैठते हैं और स्वाधीनता को सर्वथा -भूल जाते हैं, उनका परतन्त्रता के दुख से मुक्त होना कठिन - है । अगर स्वाधीनता का आदर्श दृष्टि के समक्ष रखा जाये और आदर्श पर पहुचने का यथाशक्य प्रयत्न किया जाये तो - एक दिन अवश्य ऐसा आएगा कि पराधीनता के दुख का अन्त हो जायेगा । स्वाधीनता के सिद्धान्त को सर्वथा भुला देने से पराधीनता के दुख से छुटकारा मिलना कठिन है ।
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कल्पना करो, एक कैदी को कैदखाने मे बन्द कर दिया गया है और एक पागल को पागलखाने मे डाल दिया है अब यह दोनो अपने बन्धन से कब छूट सकते हैं ? कैदी की तो कैदखाने से छूटने की अवधि निश्चित है किन्तु पागल का दिमाग जब शात और स्थिर होगा तभी वह पागलखाने से छूट सकेगा । दिमाग शान्त और स्थिर हुए बिना वह पागलखाने से छुटकारा नहीं पा सकता । ज्ञानी और अज्ञानी
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में भी इसी प्रकार का अन्तर है । अपराध तो ज्ञानी से भी - हो जाता है परन्तु ज्ञानी के अपराध के दण्ड की अवधि
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होती है और अज्ञानी के दण्ड की अवधि नही होती । अतएव जब अज्ञानी का अज्ञान मिटता है तभी वह दुख से छूटता है । इस प्रकार अज्ञानता एक प्रकार का पागलपन
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है । अतएव स्वतन्त्रता क्या है, इसका ज्ञान प्राप्त करो |
एक लेख मे मैनें देखा था - किसी जगह पागलखाने