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तेतीसवां बोल-२०३
इक्खागरायवसभो कुन्थु नाम नरेसरो । विक्खायकित्ती भगवं पत्तो गइमणुत्तरं ॥
- उत्तराध्ययन, अ० १८, गा० ३६-४० । अर्थात्--जिन का सम्पूर्ण भरतखण्ड पर अधिकार था, उन भगवान् शान्तिनाथ और भगवान् कुन्थुनाथ ने अपनी समस्त ऋद्धि का त्याग किया था ।
उन्होने यह त्याग क्यो क्यिा था? उनके त्याग का यही कारण था कि उन्हे उस ऋद्धि में परतन्त्रता प्रतीत हुई थी। उस ऋद्धि मे उन्हे स्वतन्त्रता नहीं मालूम हुई । उन्होने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए ही राज्य को ऋद्धि का त्याग किया था ।
भगवान् शान्तिनाथ चक्रवर्ती राजा थे, फिर भी उन्होने शाति प्राप्त करने के लिए राजपाट त्याग दिया । त्याग से ही शाति मिलती है । भोग से कभी किसी को न शान्ति मिली है, न मिलती है और न मिलेगी । अतएव भगवान् शान्तिनाथ ने शाति प्राप्त करने का जो मार्ग बतलाया है, उसे जीवन में स्थान देने से ही वास्तविक कल्याण होगा ।
यह आशका उठाई जा सकती है कि हम लोग अगर शाति धारण करके वैठ रहे तो बदमाश लोग हमे शात कैमे रहने देगे ? इसका उत्तर यह है कि अगर तुम्हारे भीतर वास्तविक शाति होगी तो कोई दूसरा तुम मे अशाति उ-पन्न कर ही नहीं सकता । अशाति तो अपने भीतर मौजूद अशाति के कारण ही होती है । अतएव शाति प्राप्त करने के लिए त्याग-भावना को अपनाना चाहिए । तुम त्याग तो करते हो मगर त्याग की पद्धति ठीक न होने के कारण