Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 212
________________ २०४-सम्यक्त्वपराक्रम (३) तुम्हें शाति प्राप्त नहीं होती। उदाहरणार्थ - एक किसान गीली जमीन मे बीज बोता है और दूसरा सूखी जमीन मे। गीली जमीन मे बोया हुआ बीज तो अकुरित हो जाता है, पर सूखी जमीन में बोया बीज जलः के अभाव मे कैसे अकुरित हो सकता है ? इसी प्रकार तुम लोग जो त्याग करते हो वह सूखी जमीन में बोये बीज को तरह निष्फल जाता है । त्याग निष्फल हो जाने से तुम्हें, शाति प्राप्त नहीं हो सकती । अगर कोई पदार्थ अहकारपूर्वक त्यागा जाता है तो वह त्याग शाति देने वाला और परमात्मा के शरण मे ले जाने वाला सिद्ध नहीं होता । शाति देने वाला सच्चा त्याग तो वही है जो बिना किसी अभिमान के, परमात्मा को समर्पित कर दिया जाये ! परमात्मा को समर्पित करने की दृष्टि से किया हुआ त्याग हमेशा फलदायक होता है, क्योकि इस प्रकार त्याग करने वाले को किसी दिन पश्चात्ताप करने का अव र नहीं आता । मान लो, तुमने किसी मनुष्य को हजार रुपया उधार दिये । उधार लेने वाले ने दिवाला निकाल दिया । ऐसी स्थिति मे तुम्हे हजार रुपये के लिए पश्चात्ताप होना स्वाभाविक है । इसके बजाय वही हजार रुपया अगर दान दिया होता तो क्यो पश्चात्ताप होता ? इस प्रकार परमात्मा को समर्पण करने की दृष्टि से जो त्याग किया जाता है, उस त्याग के लिए पश्चात्ताप करने का कोई कारण नही रहता। प्रत्येक वस्तु की तीन अवस्थाएँ होती हैं - दान, भोग और नाश । तुम लोग वस्तु का भोग करते हो और उसका ताश भी होता देखते हो, परन्तु दान मे बहुत कम उपयोग

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