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१६४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
है । तव सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- मेरे एक ही पति हैं, फिर भी वह मेरे वश में नही रहते, और तुम्हारे पाच पति हैं फिर भी वे पाँचो तुम्हारे वश में रहते है। अतएव मैं पूछना चाहती है कि क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा वशीकरण मन्त्र है, जिसके प्रभाव से तुम पाचो पतियो को अपने वश मे रख सकती हो ? अगर ऐसा वशीकरण मन्त्र जानती होओ तो मुझे भी वह मन्त्र सिखादो न?"
द्रौपदी ने उत्तर दिया - मैं ऐसा वशीकरण मत्र जानती हू, परन्तु जान पडता है, कोमलांगी होने के कारण तुम वह मन्त्र साध नही सकोगी।
__ सत्यभामा कहने लगी-मैं उस मन्त्र को अवश्य साव सकूँगी । मुझे अवश्य वह मन्त्र बता दो । मुझे उसकी वडी आवश्यकता है।
ऐसे वशीकरण मन्त्र की आवश्यकता किसे नही होती? उसे तो सभी चाहते हैं। पिता पुत्र को, पुत्र पिता को, पति पत्नी को, पत्नी पति को और इस प्रकार सभी एक दूसरे को अपने वश मे करना चाहते हैं। मगर यह मत्र जब साध लिया जाये तभी सव को वश मे किया जा सकता है ।
द्रौपदी ने सत्यभामा से कहा मैं वशीकरण मत्र द्वारा सव' को अपने वश मे रखती है। वह मन्त्र यह है कि स्वय दूसरे के वश मे रहना । इस मन्त्र से जिसे चाहो उसे वश में कर सकती हो । इस मन्त्र को साधने का उपाय मेरी माता ने मुझे सिखाया है । मन्त्र साधने की विधि बतलाते हुए मेरी माता ने कहा था- 'पति के उठने से पहले उठ जाना ।' फिर पति की आवश्यकताएँ अपने हाथ से पूरी