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{- , तेतीसवां बोल-१६३
वही संभोग का त्याग कर सकता है । अत. आलम्बन को त्यागी ही।सभोग का त्यागी कहलाता है । । ' - प्रजा उसी राजा का सन्मान करती है जो रीजा अपनी और प्रजा की रक्षा करने में समर्थ होता है । जो राजा' स्वयं अपनी सेवा दूसरो से कराता हो उसे प्री कायर कहेगी और 'उसका प्रजा पर कोई प्रभाव नही पडेगा। इसी प्रकार स्वावलम्बी होने से और अपनी रक्षा में स्वयं मेव समर्थ होने से और दूसरे की सहायता की अपेक्षा न रखने से ही साधु संभोग का त्यागी कहलाता है ।।
जो व्यक्ति अपना काम आप करके दूसरो का काम करने में समर्थ होता है, वही व्यक्ति प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और दूसरो. पर अपना प्रभाव भी डाल सकता है। यह बात एक प्राचीन उदाहरण द्वारा समझो ।'
विराट-नगरी मे अज्ञातवास समाप्त करके पाण्डव अभी प्रकट हुए थे । वे अपनी प्रसिद्धि करने के लिए अभिमन्यु का विवाह उत्तरा के साथ धूमधाम के साथ कर रहे थे । इस विवाहोत्सव में भाग लेने के लिए श्रीकृष्ण की कई रानियां भी विराट-नगरी मे आई हुई थी । विवाहोत्सव सानन्द सम्पन्न हो जाने के बाद जब श्रीकृष्ण की रानियाँ वापिस द्वारिका लौटने लगी तो द्रौपदी उन्हे विदा करने गई । श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामा बहत 'भोलो थी। इसीलिए 'झोली भामा' की कहावत प्रसिद्ध हो गई है । भोली सत्यभामा ने रास्ते में द्रौपदी से कहा- मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूं । द्रौपदी ने उतर मे कहा- तुम मुझसे बडी हो और तुम्हे मुझमे प्रत्येक वात पूछने का अधिकार