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तेतीसवां बोल-१६५ करना । दास दासियो के भरोसे न बैठी रहकर सब काम अपने हाथ से करना और दाम-दासी की अपेक्षा अपने आपको बडी दासी समझना । इस प्रकार अपने को नम्र बनाकर सब काम करना । बडो-वूढो की मर्यादा रखना । सब की सेवा शुअषा करना और मव को भोजन कराने के बाद आप भोजन करना । इसी प्रकार सब के सो जाने पर सोना । काम करते करते फुरसत मिल जाये तो सब को कर्त्तव्य और धर्म का मान कराना । इस प्रकार कर्त्तव्यपरायणता का परिचय देकर अपनी चारित्रशीलता का प्रभाव डालना । यही वशीकरण मन्त्र को साधने के उपाय हैं । इस उपाय से मन्त्र को अच्छी तरह साधना की जाये तो अपने पति को तथा अन्य कुटुम्बी जनो को अपने अधीन किया जा सकता है । अगर तुम इस विधि से मन्त्र की साधना करोगी तो श्रीकृष्ण अवश्य तुम्हारे वश मे हो जाएंगे।
तुम लोग भी इस वशीकरण मन्त्र को साधने का प्रयत्न करो । साहस और शक्ति के साथ मन्त्र को साधने का प्रयत्न करोगे तो अवश्य उसे साध सकोगे । अगर तुमने मन्त्र-साधन का साहस ही न किया और दूसरे के भरोसे बैठे रहे तो यह तुम्हारी पराधीनता कहलाएगी । शास्त्र तम्हे जो उपदेश देता है सो तुम्हारी परतन्त्रता दूर करने के लिए ही है । शास्त्र तो तुम्हे आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनो दृष्टियो से स्वतन्त्र करना चाहता है । इसी कारण शास्त्र आध्यात्मिक उपदेश के साथ ७२ कलाओ का शिक्षण सपादन करने का भी उपदेश देता है । मगर तुम तो परतन्त्रता मे और दूसरो के हाथो काम कराने में ही सुख मान वैठे हो । परतन्त्रं रहने मे और दूसरो के हाथो से काम