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तेतीसवां बोल-१८५
शब्दार्थ प्रश्न - भगवन् । सभोग का प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर- हे गौतम । सभोग का प्रत्याख्यान करने से जीव परावलम्बन का क्षय करता है और उस स्वावलम्बी जीवात्मा के योग उत्तम अर्थ वाले हो जाते हैं। वह आत्मलाभ से ही सतुष्ट रहता है, पर के लाभ की आशा नहीं करता, एव कल्पना, स्पृहा, प्रार्थना अथवा अभिलाषा भी नहीं करता। इस प्रकार जीवात्मा अस्पृही-अनभिलाषी बनकर उत्तम प्रकार की दूसरी सुखशय्या पाकर विचरता है ।
- - - व्याख्यान
सभोग का प्रत्याख्यान करने से जीव को होने वाले लाभ का विचार करने से पहले यह विचार कर लेना आव. श्यक है कि सभोग का अर्थ क्या है ?
जिस समान मिलन से अपना और दूसरो का कल्याण होता हो, उस समान मिलन को सभोग कहते हैं इसके विपरीत जिंस मिलन से स्व-पर का अकल्याण होता हो वह विसभोग कहलाता है । मिलन चार प्रकार का है। श्रीस्था. नागसूत्र मे मिलन की चौभगी बनाकर कहा गया है -
(१) किसी पुरुष का मिलन लम्बे समय के लिए लाभकारक होता है किन्तु लम्बे समय के लिए हानिकारक होता है।
(२) किसी पुरुष का मिलन लम्बे समय के लिए लाभप्रद होता है और थोडे समय के लिए हानिकर होता है।