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१८६ - सम्यक्त्वपराक्रम ( ३ )
(३) किसी पुरुष का मिलन लम्बे समय के लिए भी लाभकारक होता है और थोडे समय के लिए भी लाभकारक होता है ।
(४) किसी पुरुष का मिलन लम्बे समय के लिए भी हानिकर होता है और थोडे समय के लिए भी हानिकर होता है ।
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यहाँ जो बात कही गई है, वह साधुओ से सम्बन्ध रखती है । साधुओ मे कोई सभागी और कोई विसभोगी होता है । शास्त्र मे सभोगी और विसभोगी दोनो प्रकार के साधु कहे गये है । कुछ लोगो का कहना है कि साधु होने के बाद साधुओ मे आपस मे भेद क्यो रखा जाता है ? साधुओ को तो एक रूप हो जाना चाहिए । उन्हे एक साथ ठहरना और एक साथ आहार करना चाहिए । ऐसे लोगो को समझना चाहिए कि यह कथन एकान्तत ठीक होता तो शास्त्र मे साधुओ के सभोगी और विसभोगी भेद न किये गये होते । शास्त्र मे कहा है कि किसी के साथ सभोग करने से गुण की वृद्धि होती हो तो वह सभोग रखना चाहिए, अन्यथा विसभोगी होकर रहना ही अच्छा है । अगर किसी के सभोग से अपने गुणो की हानि होती हो तो उस सभोगी को भी विसभोगी बना लेना चाहिए । साधुग्रो मे से कोई माघु अगर साधुता के मार्ग से हट गया हो तो उसे यही कहा जा सकता है कि तुम साबुता का मार्ग अंगीकार करो अन्यथा हम तुमसे विसभोगी वन जाएँगे ! जवं शास्त्र में इस प्रकार कहा गया है तो यह कैसे कहा जा सकता है कि सव साधुओं को एक रूप होकर ही रहना चाहिए !