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बत्तीसवां बोल-१८३
कर सकता।
कहने का आशय यह है कि कूका ने सत्य की प्रतिज्ञा पालने के लिए अपने प्राण दे दिये । यह तो ऐतिहासिक घटना है । आहत दर्शन मे तो सत्य को ही प्रधान पद दिया गया है । परन्तु तुम लोग जैनदर्शन के श्रद्धालु होते हुए भी, नैतिक बल के अभाव मे, दूसरो को बुरा न लगने देने के लिए भी असत्य बोलते हो । व स्तव मे वही सत्यभाषी हो सकता है, जिसमे साहस विद्यमान हो। जिसमें साहस नही, वह सत्य नही बोल सकता। सत्यभाषण मे सदैव लाभ ही है।
साराश यह है कि जिस व्यक्ति मे विषयलालसा होती है, उसी के द्वारा हिंसा, असत्य, चोरी आदि पापकर्म होते है। विषयवासना से विमुख हो जाने पर पापकार्य नहीं होते । जो ब्यक्ति विषयलालसा का त्याग कर देगा, वह किसलिए पाप करेगा ? अतएव पापकर्मों से बचने के लिए सर्वप्रथम विषयलालसा पर विजय प्राप्त करो। विषयलालसा को जीत कर मन को जितना अधिक पवित्र बनायोगे, तुम परमात्मा के उतने ही अधिक समीप पहुच जाओगे । कदाचित् पहले के कोई कर्म बचे होगे तो उनकी भी निर्जरा हो जाएगी। पापकर्मों को दूर करने के लिए, पापकर्मों की जड-विषयलालसा का उच्छेद करने का प्रयत्न करो । अगर तुम विषयवासना को जीतने जाओगे और व्रतपालन मे दृढ़ रहोगे तो परमात्मा का साक्षात्कार होगा और आत्मा का कल्याण होगा । स्मरण रहे, पाप को छिपाने से पाप दूर नहीं होता। कदाचित् पाप हो जाये तो उमे छिपाओ मत । उसे हटाने का प्रयत्न करो । ससार के जाल मे से छूटने का यही मार्ग है।