________________
तीसवां बोल-१४३
करोगे? बडी ही कठिनाई से यह जन्म मिला है । फिर भी ससार के बन्धनो से छुटकारा पाने के लिए इसका सदुपयोग न करके बन्धनो को मजबूत करने मे दुरुपयोग करना कितनी बड़ी मूर्खता है । भक्त तुकाराम ने इस विषय मे कहा है - अनन्त जन्म जरी केल्या तपराशी तरी हान पवसी मानव देह । ऐसा.हा निदान लागेला सि हाथी त्याची केली माटी भाग्यहीन । उत्तमाचा सार वेदाचा भडार जया ने पवित्र तीर्थे होति । म्हणे तुकिया बन्धु आणी उपमा नाही या तो जन्मी छ वयासी।
___ भक्त तुकाराम कहते हैं कि ऐसा दुर्लभ मनुष्य-जन्म मिलने पर भी कितने ही भाग्यहीन लोग, मनुष्य जन्म का मूल्य वैसा ही आकते हैं जैसा मूर्ख मनुष्य हीरा की कीमत पत्यर की वन्ह आंकता है । अभागे लोग' मनुष्यजीवन का मेक मूल्य नही आक सकते । मनुष्य, फिर भले ही वह चोर ही क्यो न रहा हो, मनुष्यजन्म का सदुपयोग करके अपना कल्याण कर सकता है । इसके विपरीत, जो मनुष्यजीवन का दुरुपयोग करता है वह चाहे चक्रवर्ती ही क्यो न हो, तब भी ससार के बन्धनो मे बन्धता है । अतएव मनुष्यजन्म का सदुपयोग ऐसे कार्यों में करना चाहिए जिससे सासारिक बन्धनो का विनाश हो ।
श्री उत्तराध्ययनसूत्र मे, दशवे अध्याय मे कहा हैवणस्सइकायमइगमो उक्कीसं जीवो उ सबसे । कालमणंतदुरंतयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥
इस गाथा का भावार्थ यह है कि हे गौतम | अनन्त दुर्गम काल व्यतीत हो जाने पर यह मनुष्यशरीर प्राप्त हुआ