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एकतीसवां बोल-१६३
लेंगे।' ऐसा विचार कर लोग अधिक खा जाते हैं और फिर वीमार पडते हैं । यह तो पडौसी के भरोसे अपना घर खुला रग्वने के समान है । आज तो प्राय. ऐसा देखा या सुना जाता है कि जो मनुष्य जुदा-जुदा प्रकार को जितनी खाद्य चीजें खाता है, वह उतना ही बडा पादमी कहलाता है । मगर शास्त्र कहता है कि जो जितना ज्यादा त्याग करता है वह उतना ही बडा पुरुष है । शास्त्र मे आनन्द श्रावक का वर्णन करते हुए कहा गया है कि बारह करोड स्वर्ण मोहरो का तथा चालीस हजार गायो का स्वामी होते हुए भी उसने परिमित द्रव्य खाने-पीने की ही मर्यादा बाँधी थी । इस प्रकार शास्त्र की दृष्टि से जो पुरुष खानपान मे जितना सयम रखता है, वह उतना ही महान् गिना जाता है।
. जीभ पर अकुश रखने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है । तुम लोगो को जैसा और जितना खाना-पीना मिलता है, वैसा और उतना किसानो को नही मिलता, फिर भी किसी समय तुम्हारी और किसान की कुश्ती हो तो कौन जीतेगा ? यह तो स्वय तुम्ही कहोगे कि किमान हमारी अपेक्षा अधिक स्वस्थ और बलव न् है ।
इस प्रकार अधिक खाने से स्वास्थ्य सुधरता नही, बिगडता है। विकृत भोजन करने से स्वास्थ्य की हानि होती है और साथ ही चारित्र की भी हानि होती है । इसीलिए. भगवान् ने कहा है कि जिस वस्तु के खाने से विकार उत्पन्न होता हो वह वस्तु साधु को नही खानी चाहिए । साधु को तो वही और उतना ही भोजन करना चाहिए, जिससे शरीर की रक्षा हो सकती हो! शरीर को बढ़ाने के लिए अर्थदा