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एकतीसवां बोल
विविक्त शयनासन
तीसवें बोल मे अप्रतिबद्धता पर विचार किया गया है । जो पुरुष अप्रतिबद्ध होता है या होना चाहता है, वह स्त्री, पशु और नपुसक वाले स्थान में शयन-आसन नही करता । अतएव गौतम स्वामी, भगवान से प्रश्न करते हैं कि विविक्त शयनासन का सेवन करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
मूलपाठ प्रश्न- विवित्त सयणासणसेवणयाएणं भंते जीवे कि जणयई ?
उत्तर- विवित्तसयणासणसेवणयाए ण चारित्तत्ति जणयइ, चरित्तगुत्ते य ण जीवे विवित्ताहारेदृढचरिते एगन्तरए मोक्खभावपंडिवन्ने प्रदविहकम्मगंठिं निज्जरेइ ॥३१॥
शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् । एकान्त शयन और आसन के सेवन से जीव को क्या लाभ होता है ? ।