________________
तीसई बोल-१५१
बातों में फंस कर अपने पूर्वजों को धिक्कारो मत । उनके महान् आदर्श को सन्मुख रखो और जीवन को उच्च बनाओ। इसी प्रयत्न मे कल्याण है।
तुम लोग धार्मिक होने के कारण कदाचित् गौराँग गुरुओ के प्रभाव से बच सके होंगे । परन्तु इस बात का तो खयाल रखते हो कि तुम्हारी सतान पर उनका कैसा प्रभाव पड रहा है ? कही ऐसा तो नही कि बकरा निकालने गये और ऊँट घुम पडा २ तुम्हारी सतान सुधार के नाम पर कुधार तो नहीं करती ? अगर तुम्हारी सतान आधिभौतिक मार्ग की ओर झुक गई हो तो उसे अध्यात्म , की ओर मोडना तुम्हारा कर्तव्य है।
कहा जा सकता है कि आजकल की सतति को आध्यात्मिक बात समझाना कठिन है। इस सम्बन्ध में यही कहना है कि बालक जब कुनाइन या और कोई कडवो दवा नही खाता तो माता कडवी दवा के साथ कोई मीठी चीज खाने को देती है । माता का उद्देश्य मीठी चीज देने का नही होता वरन् कुनाइन या कडवी दवा देने का और रोग मिटाने का होता है । इसी प्रकार तुम लोग भी सतानो मे आध्यात्मिक भाव भरने का उद्देश्य रखो । अगर सीधी तरह आध्यात्मिक भाव नही भरा जा सकता तो आध्यात्मिक भाव रूपी कुनाइन को आधिभौतिक रूपी मीठी चीज के साथ दो। अगर तुम आध्यात्मिक मार्ग की ओर मुडोगे और तुम्हारी सन्तान आधिभौतिकता की ओर अग्रसर होगी तो दोनो के बीच खीचतान होने की सम्भावना रहेगी । अतएव मतभेद और खीचतान पैदा न होने देने के लिए मध्यम मार्ग खोज निकालना चाहिए, ! --~--