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उनतीसवां बोल-१२१
अर्थात- श्रावक धर्मी होता है धर्म में आनन्द मानने वाला होता है, धर्म का उपदेशक होता है और धर्मपूर्वक आजीविका करता हुआ विचरता है।
अब यहा विचार करो कि धर्मपूर्वक आजीविका करने का अर्थ क्या है ? क्या श्रावक भिक्षाचरी करता है ? श्रावक जब तक ग्यारह प्रतिमाधारी नही बनता तब तक भिक्षा नही कर सकता । भिक्षा के तीन प्रकार हैं । पहली सर्वसम्पत्तिकरी भिक्षा, दूसरी वृत्तिभिक्षा, और तीसरी पौरुषघ्नी भिक्षा है।
___ जो महात्मा सयम का पालन करते हैं और केवल सयम की रक्षा के लिए ही शरीर का निर्वाह करने जितनी भिक्षा लेते हैं वह भिक्षा सर्वसम्पत्तिकारी कहलाती है। भगवान् ने साधुओ को अपना शरीर नष्ट करने की आज्ञा नहीं दी है। साधु केवल शरीरनिर्वाह के लिए और धर्माचरण करने के लिए ही भिक्षा लेते हैं । यह भिक्षा सर्व. सम्पत्तिकारी होती है । जो भिक्षु सम्यक् प्रकार से साधुधर्म का पालन नहीं करता, उसे भिक्षा मांगने का अधिकार नही है । जो भिक्षु निरारभी और निष्परिग्रह रहा र साघुधर्म का बराबर पालन करता है, उसी को भिक्षा मागने का अधिकार है । जो भिक्षु सयम का पालन नहीं करता और केवल पेटपूर्ति के लिए भिक्षा मांगता है, शास्त्र मे उसे ‘गामपिंडोलिया' कहा है।
कितनेक लोग साधुधर्म का पालन न करते हुए भी सिर्फ पेट भरने के लिए साधु बन जाते हैं। ऐसे पेटू साधु समाज के लिए भाररूप हैं । भारत मे ऐसे साधु करीब