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१४० - सम्यक्त्वपराक्रम ( ३ )
जगत् के समस्त पदार्थों से अलिप्त रहता है, 'वह अप्रतिबद्ध या अनासक्त कहलाता है । पकंज अर्थात् कीचड में उत्पन्न होने वाला कमल । कमल कीचड में पैदा होकर भी कीचड़ ' से अलिप्त रहता है । अगर कमल कीचड से प्रतिबद्ध हो जाये तो उसका विकास ही न हो - वह सड जाये । इसी प्रकार वस्तु के ससर्ग से उत्पन्न होने वाले प्रतिवध से आत्मा का विकास रुक जाता है और जवः ग्रात्मा अप्रतिवद्ध होकर विहार करता है तो उसका अधिकाधिक विकास होता है । शास्त्र के इस कथन से तुम अपने विषय, मेरे विचार कर सकते हो कि तुम्हे यह मनुष्य जन्म किस प्रकार मिला है और किस प्रकार इसका सदुपयोग करना चाहिए ? विचार करो कि यह मनुष्यभव तुम्हे प्रतिबन्ध को मजबूत करने के लिए मिला है या प्रतिबन्ध तोडने के लिए मिला है ? श्री सूत्रकृताग सूत्र मे इस विषय में कहा हैं ---
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जैसि कुले समुप्पण्णे जेसि वा सबसे नरे । ममाइ लुप्पइ वाले अन 'मुच्छिए ।
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सु. १- अ. १ - उ १ - गा. ४ ।
इस सूत्र के अनुसार आत्मा जिस कुल मे उत्पन्न होता है अथवा जिसके साथ निवास करता है, उसी के साथ ममत्व उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार माँ उत्पन्न होने के दो कारण हैं - एक जन्म और दूसरा सहवास । तात्पर्य यह है कि एक तो जन्मजनित स्नेह उत्पन्न व्होता है और सगजनित । यह दोनो प्रकार के स्नेह - ममत्व के कारण हैं ।" शास्त्र कहता है, दोनो प्रकार के स्नेह से - उत्पन्न होने वाला ममत्व आत्मा के लिए बवनकारक है। आत्मा अजर - अमर
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