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१२८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
कि हमारा दिया हुआ रुपया वसूल नहीं होगा, तो इस दशा मे तुम रुपया नही दागे, यह स्वाभाविक है। महान् से महान् चक्रवर्ती भी फल की आशा से ही अपनी सम्पदा का त्याग करते हैं । इसी कारण भगवान् से यह प्रश्न पूछा गया है कि विषय-सुख की आसक्ति का त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फर्माया है-विपयसुख का त्याग करने से विषयभोग के प्रति अनुत्सुकता उत्पन्न होती है, अर्थात् विषयसुख भोगने की उत्सुकता या इच्छा नही रहती । जिसने आम खाने का त्याग कर दिया है उमे आम खाने की उत्सुकता नहीं रहती। इसी प्रकार विषयसुखो का त्याग करने से विषयो के प्रति उत्सुकता या चचलता नहीं रहती । त्याग न किया जाये तो उत्सुकता या चचलता बनी ही रहती है ।
__ रामायण के कथनानुसार जब सूपणखा ने रावण के सामने राम और लक्ष्मण के गुणो का वर्णन किया तो रावण के हृदय मे किसी तरह की उत्सुकता या चचलता उत्पन्न न हुई परन्तु जब उसने सीता के रूप का वखान किया तो रावण के हृदय में इस प्रकार की चचलता पैदा हो गई कि जो सीता ससार की स्त्रियो मे शिरोमणि बतलाई जाती है, उसे मुझे देख तो लेना चा.िए। इसी चचलता के कारण घोर अनर्थ हुया । रावण अगर पहले से ही विपयसुख या परस्त्री का त्यागी होता तो उसके हृदय में इस प्रकार की चचलता पैदा न होती और तब ऐमा अनर्थ भी क्यो होता? .
इस प्रकार विषयसुख का त्याग करने मे चलता