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उनतीसवो बोल-१२७
विषयलालसा छूटती नही तब तक अनुकम्पा उत्पन्न होती नही । जब प्राणीमात्र के प्रति आत्मभाव उत्पन्न होता है तभी अनुकम्पा उत्पन्न होती है । हृदय मे अनुकम्पा उत्पन्न करने के लिए परमात्मा से यही प्रार्थना करनी चाहिए
ऐसी मति हो जाय, दयामय, ऐसी मति हो जाय । औरों के सुख को सुख समझू, सुख का करू उपाय ॥ अपने दुःख सब सहू किन्तु परदु.ख नहीं देखा जाय ॥
अर्थात् हे प्रभो । मुझमे ऐसी सुबुद्धि उत्पन्न हो कि मैं दूसरो के दुख को अपना ही दुख मानूं और दूसरों के सुख को अपना सुख समझू । इस प्रकार की सन्मति सब मे उत्पन्न हो जाए तो विश्वप्रेम फैल जाए । विश्वप्रेम की जननी अनुकम्पा है । अनुकम्पा पैदा करने के लिए विषयसुख के प्रति निस्पृह बनो । जब तुम्हारे हृदय मे से विषयसुख की लालसा दूर होगी, तब हृदय मे अनुकम्पा के अकुर फूट निकलेंगे । उस समय तुम दया गत्र बनने के बदले दया. मय बन जाओगे । विश्वप्रेम उत्पन्न करने के लिए तुम दूसरो के सुख मे सुख और दुख मे दुख मानोगे तो स्व-पर का कल्याण ही करोगे । ।
किसी भी कार्य का फल जान लेने से उसमें जल्दी प्रवृत्ति होती है । जब तक किसी कार्य का फल न जान लिया जाये तबतक किसी भी कार्य मे प्रवृत्ति नहीं होती। व्यवहार मे भी देख-भाल कर ही प्रवृत्ति की जाती है । जव तुम्हे खातिरी होती है कि हम जो रुपया दे रहे है वह व्याज सहित वापिस मिल जायेगा, तो तुम रुपया देने मे ढोल नही करते । इसके विपरीत अगर तुम्हे मालूम हो जाये