________________
तीसवां बोल
प्रतिबद्धता
उनतीसवे बोल मे सुखशय्या अथवा सुख साता के सम्बन्ध मे काफी विचार किया जा चुका है । ग्रव यह विचार करना है कि सुखशय्या पर कौन सो सकता है या सुखसातापूर्वक कौन रह सकता है ? जिस व्यक्ति मे विषयलोलुपता नही है और जिसमे प्रतिबद्धता अर्थात् आसक्ति नही है, वही व्यक्ति सुखशय्या पर सो सकता है । अतएव गौतम स्वामी भगवान् से यह प्रश्न करते हैं कि अप्रतिबद्धता अर्थात् अनासक्ति से जीव को क्या लाभ होता है ?
मूलपाठ
प्रश्न- श्रपडिबयाएणं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर - पडिवद्धयाएणं निस्संगतं जणयइ, निस्संग शेण जीवे एगे एगग्य चित्ते दिया वा राम्रो वा प्रसज्जमाणे डिबद्ध श्रावि विहरइ ॥ ३० ॥
शब्दार्थ
प्रश्न- भगवन् । अनासक्ति से जीव को क्या लाभ होता है ?