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१३६ - सम्यक्त्वपराक्रम (३)
अगर सकल्प - विकल्प न मिटे तो समझना चाहिए कि अभी तक चारित्रमोहनीय कर्म नष्ट नही हुआ है । सकल्प-विकल्प के मिट जाने पर वास्तविक चारित्र प्रकट होता है । जब चारित्रमोहनीय कर्म का पूर्ण रूप से नाग हो आता है, तब आत्मा सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है । इस प्रकार विषयलालसा को दूर करने से श्रात्मा गुणक्रमारोहण करके सिद्धि प्राप्त करता है । यही मुक्ति का मार्ग है । शास्त्रकार कहते हैं कि मोक्ष मार्ग सरल तो है मगर इस मार्ग पर जाने के लिए विपयलालसा आदि जो काँटे बिखरे पड़े है, उन्हे सर्वप्रथम दूर करने की आवश्यकता है । विषयलालमा को जीत लिया जाये तो मुक्ति के मार्ग पर चलना सग्ल है । गीता मे भी कहा है
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भारतर्षभ !
अर्थात् हे अर्जुन। पहले इन्द्रियो की विपयलालसा जीत लो । विपयलालसा को जीत लेने से तुम सभी पर विजय प्राप्त कर सकोगे ।
मुक्ति मार्ग पर जाने के लिए, तुम लोग भी सर्वप्रथम इन्द्रियो को जीतने का प्रयत्न करो । अगर तुम प्रारम्भ से इन्द्रियो पर विजय प्राप्त करोगे तो क्रमश. मुक्ति भी प्राप्त कर सकोगे । परम्परा से मिलने वाले फल को प्राप्त करने के लिए सब से पहले प्रारम्भिक कार्य करना चाहिए |