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१२२ सम्यक्त्वपराक्रम (३)
बावन लाख है । इन बावन लाख साधुओ के लिए भारत को कितना खर्च वहन करना पडता है ? लोगो से भिक्षा माग-माग कर खाना और सावुधर्म का पालन न करना बहुत ही बुरी बात है । बहुत-से लोग इन पेटू साधुओ को भी गुरु-बुद्धि से मानते हैं । यह विपमकाल का ही प्रभाव है । विषमकाल कैसा होता है, यह बतलाते हुए शास्त्र मे कहा है - विषमकाल में साधुओ की पूजा नही होती और असाधुओं की पूजा होती है । परन्तु जो लोग आत्मा का कल्याण करना चाहते होगे, वे तो साधुधर्म का बराबर पालन करने वाले साधु को ही पूजा करेंगे और उसी को गुरु के रूप मे मानेगे ।
दूसरी वत्तिभिक्षा है। लूले, लगडे या अपग लोग जो भीख मागते हैं, वह वृत्तिभिक्षा कहलाती है । इस वृत्तिभिक्षा की न निन्दा की गई है और न प्रशसा ही की गई है । दयालु लोग दया करके देते हैं और दया को कोई बुरा नही कहता ।
तीसरी भिक्षा पौरुषघ्नो है । जो लोग हृष्टपुष्ट है और जो मेहनत करके कमा सकते हैं, फिर भी मेहनतमजूरी न करके केवल भीख माग कर खाते है, उनकी भिक्षा पौरुषघ्नी है।
कहने का आशय यह है कि श्रावक धर्मपूर्वक प्राजीविका करने वाले कहे गए हैं । गृहस्थ श्रावक भिक्षा मागकर नही खाते, वरन् धर्मपूर्वक अपनी आजीविका करते हैं। श्रावक न्यायपूर्वक प्राजीविका करते थे और स्वतन्त्रतापूर्वक आजीविका करते थे। उस समय के श्रावक रवालम्बी थे।