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अदा ईसवा बोल-६५
बुझा हुआ दीपक न अधकार फैलाता है, न प्रकाश करता है । अगर दीपक की तरह अत्मा भी सिद्ध होने के बाद अस्तित्व मे न रहे और नष्ट हो जाये तो फिर आत्मा की ऐसी सिद्धि किस काम की ? आत्मा सिद्ध होने पर अस्तित्व मे ही न रहे, वरन् दीपनिर्वाण की तरह नष्ट हो जाये, ऐसा मान लिया जाये तो अनेक दोष आते हैं । इन दोषो का परिहार करने के लिए शास्त्र मे 'सिद्ध' शब्द के साथ 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग करके बतलाया गया है कि आत्मा सिद्ध होने पर बुद्ध भी होता है अर्थात सर्वज्ञानी और सर्वदर्शनी बन जाता है ।
यहा प्रश्न उपस्थित होता है कि जो आत्मा सिद्ध हो जाता है, उस सिद्धात्मा के लिए क्या करना शेष रह जाता है ? या सिद्ध होने के बाद 'बुद्ध' होता है।
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पूर्ण ज्ञानी होने के बाद ही सिद्ध' दशा प्राप्त होती है। परन्तु जैसे अभ्यास करने का
'बुद्ध' (ज्ञानी) मानता है मगर सिद्ध होने के बाद बुद्ध नही मानता । सिद्ध होने पर बोध नष्ट हो जाता है । मगर शास्त्रकार 'सिद्ध' शब्द से पहले 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग करते तो पाठको को सदेह हो सकता था कि सिद्ध होने से पहले तो बुद्ध भले हो मगर 'सिद्ध' होने के बाद 'बुद्ध' रहना है या नही ? इस शका का समाधान करने के लिए पहले सिद्ध और फिर बुद्ध शब्द का प्रयोग किया है। इसका अर्थ यह निकला कि सिद्ध होने के बाद भी आत्मा बुद्ध रहता है।
- सम्पादक ।