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उनतीसवां बोल
सुखसातर
अद्वाईसवें बोल मे व्यवदान के विषय में विचार किया यया है। व्यवदान अर्थात् पूर्वस चित कर्मों का नाश करने से सुख-साता उत्पन्न होती है और सयम मे शाति आती है । अगर सयम मे शाति न आये तो समझना चाहिए कि व्यवदान अर्थात् सचित कर्मों का क्षये ठीक नहीं हुआ। अब सुख-साता के विषय मे भगवान् महावीर से मौतम स्वामी प्रश्न करते है।
मूलपाठ' . .,, - प्रश्न - सुहसाएणं भंते !. जीवे कि जणयइ ?.
उत्तर- सुहसाएणं अणुस्सुयत्ते जणयइ, अणुस्सुएणं जी अणुब्भडे, विगयसोगे चरित्तमोहणिज्ज कम्म खवेइ। -."
, शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् ! सुखसाता से जीव को क्यो लाभ होता है ?
उत्तर- सुखसाता अथवा सुखशय्या से जीव को मन