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: , अट्ठाईसवां बोल-१०३
मत यह भी है कि सिद्धो में ज्ञान और दर्शन का एक साथ उपयोग नही रहता । जब ज्ञान का उपयोग होता है तब दर्शन का उपयोग नही रहता और- जब दर्शन का उपयोग होता है तब जान का उपयोग नही रहता । यह विषय चर्चास्पद है । अगर किसी चर्चास्पद विषय में हमारी बुद्धि काम न दे सके तो 'केवलिवाक्य प्रमाणं' कहकर सतोष. मानना चाहिए । परन्तु जो बात शास्त्र में स्पष्ट रूप से कही गई हो, उसे तो उसी रूप में मानना चाहिए । सिद्ध के ज्ञान और दर्शन का उपयोग एक साथ होता है या नही, इस विषय मे पन्नवणासूत्र मे कहा है- . . - केवली ण भते ! जं समय जाणइ न तं समयं पासइ !
जं समयं पासइ न तं समय जाणइ ? हता, गोयमा ! __अर्थात - गौतस स्वामी ने प्रश्न पूछा- भगवन् । केवली का जव ज्ञानोपयोग होता है तब दर्शनोपयोग नहीं होता ? और जब. दर्शनोपयोग होता है तब-ज्ञानोपयोग. नही-होता . .
उत्तर में भगवान् ने कहा- हां, गौतम । ऐसा ही है।
शास्त्र मे इस वचन के प्रमाण से 'हमे ऐसा मानना चाहिए कि सिद्ध को जव दर्शनोपयोग होता है, तंब ज्ञान, का उपयोग नहीं होता, और जब ज्ञान का उपयोग होता है, तब दर्शन का उपयोग नहीं होता।
कहने का आशय है कि सिद्ध होने पर ज्ञान-विज्ञान नष्ट नही हो जाता, यह प्रकट करने के लिए ही 'सिद्ध' के साथ 'बुद्ध' शब्द का भी प्रयोग किया गया है । 'सिद्ध' और 'बुद्ध' शब्द के साथ अन्य शब्दों का प्रयोग किस प्रयोजन