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६८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
तुम जरा काल के विषय मे विचार करो। क्या भूतकाल-का कही अन्त मालूम होता है ? तिथि, मास, वर्ष वगैरह बहुत बार व्यतीत हो चुके । सब की गणना करो तो भी भूतकाल का अन्त नही आ सकता । . उसे अनन्त कहना पडेगा । अपने वर्तमान जीवन का अन्त तो आ जायेगा मगर भविष्यकाल का अन्त नही आ सकता । इस प्रकार जब भूतकाल और भविष्यकाल का अन्त नही तो उन कालो मे होने वाले पदार्थों का अन्त कैसे हो सकता है ? ससार के समस्त काम काल के साथ ही होते है । अतएव जानी आत्माओ ने भूतकाल और भविष्यकाल को देखकर कहा है कि जीव, काल की अपेक्षा अनन्तगुणा अधिक हैं । अतएव ससार का अन्त नही आ सकता तथा किसी भी काल मे वह जीवो से रहित भी नही हो सकता । यही बात स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण देता हू -
मान लो किसी कोठरी मे श्रीफल भरे है और दूसरी कोठरी मे खसखस के दाने भरे है। दोनो कोठरिया लम्बाईचौडाई-ऊचाई मे बराबर है । मगर श्रीफल परिमाण मे बडे होने से, गिनती के लिहाज से, खसखस के दानो की अपेक्षा बहुत थोडे हैं । अब अगर दोनो कोठरियो में, से, क्रमश. एक श्रीफल और एक खसखस का दाना बाहर निकाला जाये तो पहले कौनसी कोठरी खाली होगी ? श्रीफलो की कोठरी का पहले खाली होना स्वाभाविक है। इसी प्रकार काल श्रीफलो के बराबर है और जीवात्मा खसखस के दानों के बराबर हैं । जब काल का ही अन्त नहीं - तो जीवो का, अन्त कैसे आ जाएगा?