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६०-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
भगवान् के इस उत्तर से यह बात निश्चित हो जाती है कि ससार मे जितनी चचलता प्रतीत होती है, वह सब कर्मो की उपाधि के कारण ही है । यद्यपि चचलता के कारण ससार है और ससार के कारण चचलता है, तथापि प्रत्येक आत्महितैषी व्यक्ति को ससार के मायाजाल से मुक्त होने का और आत्मा को स्थिर करके शांति प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । जन्म-मरण करते-करते आत्मा ने अनन्तकाल व्यतीत किया है, फिर भी उसे शाति नही मिली । वास्तव मे जब तक आत्मा मे चचलता है, स्थिरता नही आई है, तब तक आत्मशाति नही मिल सकती । आत्मशाति प्राप्त करने के लिए आत्मा को स्थिर करना चाहिए।
___ जो आत्मा ससार मे ही भ्रमण करना चाहता है उसके लिए तो यह धर्मोपदेश, भैस के आगे बीन बजाने के समान है, परन्तु जो जीवात्मा ससार की आधि, व्याधि और उपाधि से व्याकुल होकर ससार के मायाजाल से मुक्त होने की अभिलापा रखते हैं, उनके लिए तो यह शाति का मार्ग है । आत्मा को स्थिर करना ही जन्म-मरण से मुक्त होने का और आत्मशाति प्राप्त करने का राजमार्ग है। - हमारे सामने दो मार्ग है ससारमार्ग और मोक्षमार्ग । इन दो मार्गों में से आत्मा जिस मार्ग पर जाना चाहे, जा सकता है । ससारमार्ग पर जाने से भवभ्रमण बढता है और मोक्षमार्ग पर चलने से भवभ्रमण रुकता है । ससारमार्ग बधन का कारण है और मोक्षमार्ग मुक्ति का कारण है। शास्त्रकार तो प्रत्येक जीवात्मा को मोक्ष का ही मार्ग बतलाते है, क्योकि मोक्ष के मार्ग पर चलने से ही प्रात्मा