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७४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
भी ठिकाना नही था । ऐसी स्थिति में वह चादी के थाल मे मेवा की खिचडी कहा से खिलाते ? राणा ने बादशाह को पहचान लिया । मगर राणा ने विचार किया - 'यह फकीर वनकर आया है और मेरा महमान बना है । इसका सत्कार करना मेरा फर्ज है । लेकिन सत्कार किस प्रकार किया जाये ? आज मेरी प्रतिज्ञा भग होने जा रही है । प्रतिज्ञा भग होने की अपेक्षा तो मर जाना कही बेहतर है।'
इस प्रकार सोच-विचार कर राणा ने फकीर से कह - 'आइए, बैठिये।' फकीर को विठला कर आप पोछे के माग से मर जाने के लिए जगल की ओर चल दिया। रास्ते मे राणा को एक मनुप्य मिला । वह बैल पर माल लादे जा रहा था । उसने कहा - 'भाई, मुझे शौच जाना है । थोडी देर इस बैल को पकड रखो न ? मैं अभी लौट आता हू ।' राणा ने सोचा-मरना तो है ही, इससे पहले इसका काम कर दिया जाये तो अच्छा ही है। इस प्रकार विचार कर राणा ने बैल को पकड लिया । वह मनुष्य बैल को पकडा कर चला गया और ऐसा गया कि बहुत देर तक भी वापिस नही लौटा । राणा खडे-खड़े निराश हो गये। सोचा देखें इस पर क्या माल लदा हुआ है ? राणा ने देखा तो उन्हे विस्मय हुआ । उस पर चादी की थालियाँ और मेवा लदा था । राणा ने वह सब सामान लाकर फकीर का अतिथिसत्कार किया ।
तात्पर्य यह है कि जो दृढप्रतिज होता है उसे किसी न किसी प्रकार से अनायास सहायता मिल जाती है । साधुनो को भी अपनी सयम पालने की प्रतिज्ञा पर दृढ रहना