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सत्ताईसवां बोल-७५ __ च हिए । मयम पालन के साथ हो भिक्षावृत्ति स्वीकार करना उचित है।
श्रावको को भी वृत्तिमक्षेष ता का पालन करना चाहिए। उन्हे अपनो वृति मे अधर्म न पंठने देने का सतत ध्यान रखना चाहिए और प्रतिज्ञा पर दृढ रहना चाहिए । ऐसा करने से कार्य भी सफन होगा और मकटो से भी वचाव होगा । इसी प्रकार अन्य तपो का स्वरूप शास्त्र के अनुसार समझ कर ययाशक्ति उनका अनुष्ठान करना च हिए।
यह पहले ही कहा जा चुका है कि तपो मे अनशन तर प्रधान है चाहे अनशन तप हो चाहे ऊनोदरी हो, वह कर्मों को नष्ट करने के लिए ही होना चाहिए । आजकल अनशन रोग नष्ट करने का भी एक साधन माना जाता है। इस प्रकार अनगन भले ही व्यावहारिक तप कहलाएगा पर ऐसे अनशन की गणना तप मे नही हो सकती । वही अनशन तप मे गिना जा सकता है जो कर्म नष्ट करने के उद्देश्य से किया गया हो ।
पहले वतलाया गया था कि ऊनोदरी तप किया जाये तो अनशन करने को आवश्यकता ही न रहे । इसका अर्थ यह नही कि ऊनोदरी करने वाले को अनशन तप करना ही नही चाहिए । यह बात व्यावहारिक दृष्टि से कही गई थी कि रोग नष्ट करने के लिए जो ऊनोदरी करता है उसे अनशन करने की आवश्यकता हो नही रहती । कर्मों को नष्ट करने के उद्दश्य से तो ऊनोदरी तप करने वाला अगर अनशन तप करता है तो और भी अच्छी बात है।
जिस तप से मन, वचन और काय की शुद्धि होती।