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५६-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
शास्त्र में सयम के विषम में विस्तृत विवेचन किया गया है। उस सब का यहा विवेचन किया जाये तो बहुत अधिक विस्तार होगा । अतएव सयम के विषय में यहा सक्षेप मे ही विवेचन किया जायेगा।
आजकल सयम शब्द पारिभाषिक बन गया है । मगर विचार करने से मालूम होगा कि सयम का अर्थ बहुत विस्तृत है । शास्त्र मे सयम के सत्तरह भेद बतलाये गये है । इन भेदो मे सयम के सभी अर्थों का समावेश हो जाता है । सयम के सत्तरह भेद दो प्रकार से बतलाये गये हैं । पाँच आस्रवो को रोकना, पाच इन्द्रियो को जीतना, चार कषायो का क्षय करना और मन, वचन तथा काय के योग का निरोध करना, यह सत्तरह प्रकार का संयम है ।
दूसरी तरह से निम्नलिखित सत्तरह भेद होते है - (१) पृथ्वीकाय सयम (२) अपकाय सयम (३) वायुकाय सयम (४) तेजकाय सयम (५) वनस्पतिकाय सयम ६) द्वीन्द्रियकाय सयम (७) त्रीन्द्रियकाय सयम (1) चतुरिन्द्रियकाय सयम (६) पचेन्द्रियकाय सयम (१०) अजीवकाय सयम (११) प्रेक्षा सयम (१२) उपेक्षा सयम (१३) प्रमार्जना संयम (१४) परिस्थापना सयम (१५) मन सयम (१६) वचन सयम । १७) काय सयम । इस तरह दो प्रकार से सयम के सत्तरह भेद है। सयम का विस्तारपूर्वक विचार करने मे सभी शास्त्र उसके अन्तर्गत हो जाते है।
जीवन भर के लिए पाच आस्रवो से, तीन करण और तीन योग द्वारा निवृत्त होना सयम स्वीकार करना कहलाता है । किमी भी प्राणी की हिंसा न करना, असत्य न बोलना,