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६४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
इसी दष्टि से वे राजपाट छोडकर युद्ध करने जाते थे और अपने प्राणो को तुच्छ समझते थे ।
इस व्यावहारिक उदाहरण को सागने रखकर सयम के विषय मे विचार करो । जैसे योद्धागण अपने राजपाट और प्राणो की ममता त्याग कर लड़ने के लिए जाते थे और भविष्य की प्रजा के सामने पराधीनता सहन न करने का आदर्श उपस्थित करते थे, उसी प्रकार प्राचीनकाल के जो लोग राजपाट त्याग कर सयम स्वीकार करते थे, वे भी आत्मकल्याण साधने के साथ, इस आदर्श द्वारा जगत का कल्याण करते थे। उनकी सतान साचती थी- हमारे पूर्वजो ने तृप्णा जीती थी तो हम क्यो तृष्णा मे ही फसे रहे ? प्राचीनकाल के राजा या तो सयम पालन करते करते मृत्यु से भेटते थे या युद्ध करते-करते। वे घर मे छटपटाते हुए नही मरते थे । आजकल के लोग तो घर मे पड़े-पडे, हाय-हाय करते हुए मरण के शिकार बनते है ऐसे कायर लोग अपना अकल्याण तो करते ही है, साथ ही दूसरो का भी अकल्याण करते हैं । इसीलिए शास्त्रकार उपदेश देते हैंहै आत्मा । तू भूत-भविष्य का विचार करने सयम को स्वीकार कर । सयम अ ते हुए कर्मो को रोकता है और निष्कर्म अवस्था प्राप्त कराता है ।
कोई कह सकता है कि क्या हमे सयम स्वीकार कर लेना चाहिए ? इसका उत्तर यह है कि अगर पूर्ण सयम स्वीकार कर सको तो अच्छा ही है, अन्यथा ससार के प्रति जो ममता है उसे ही कम करो | इतना करोगे तो भी बहत है । आज लोग साधन का ही साध्य मानने की भूल कर