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४६ - सम्यक्त्वपराक्रम ( ३ )
में जब आत्मीयता का भाव उत्पन्न होता है तभी उसके कारण राग-द्वेष होता है । राग-द्वेष होने से आत्मा को सक्लेश होना स्वाभाविक है । श्रुत की श्राराधना करने से वस्तु सम्बन्धी राग-द्वेष मूलक मोह नष्ट हो जाता है और राग-द्वेष नष्ट हो जाने से आत्मा को संक्लेश नहीं होता, बल्कि वैराग्य पैदा होता है । इस प्रकार सूत्र की आराधना का महत्व बहुत अधिक है ।