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पच्चीसवा बोल-५३
बारम्बार यही कहता हूं कि परमात्मा का भजन करो । परमात्मा के भजन से मन एकाग्र होगा । दूसरे कामो से मन हटा कर परमात्मा के भजन मे ही मन पिरो दो । परमात्मा के भजन का सहारा लेकर मन को एकाग्र करने
से चित्त की चचलना दूर होगी । इसलिए परमात्मा का । भजन करने में देरी मत करो। कहा भी है-.
दम पर दम हरि भज, नहीं भरोसा दम का, एक दम में निकल जावेगा दम आदम का । दम आवे न आवे इसकी प्राश मत कर तू, एक नाम सांई का जप हिरदे में धर तू ॥ नर ! इसी नाम से तर जा भवसागर पू, दम आवे न आवे इसकी प्राश मत कर तू ॥
श्वास का विश्वास नही । श्वास तो वायु है । कदाचित् आवे, कदाचित् न भी आवे । इसका क्या भरोसा ! इसलिए मुख मे से श्वास निकलने के पहले ही परमात्मा का भजन करो। इस प्रकार परमात्मा का भजन करने से मन एकाग्र होगा।
आत्मा एक बड़ी भूल कर रहा है । वह यह कि तुच्छ चीजो मे मन का प्रयोग करके आत्मा, परमात्मा को भूल रहा है । वह इतना भी तो नही सोचता कि मेरा मन परमात्मा मे एकाग्र हो जायेगा तो उस दशा मे मुझे तुच्छ वस्तुओ की क्या कमी रह जायेगी। इस प्रकार विचार न करके आत्मा अपने मन को इधर-उधर दौडाया करता है। यही मन की चचलता है । इस चचलता को दूर करने के लिए ही शास्त्रकार मन की एकाग्रता की आवश्यकता बत