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५२-सम्यक्त्वपराक्रम (३) किया जाता है। इस प्रकार रुपये से होने वाले अनर्थों का विचार किया जाये तो रुपये के प्रति वैराग्य होगा हो । ___ - बडे-बडे शहरो मे कूलागनाएँ वेश्या बन कर अपना
शरीर दूसरों को किसलिए सौरतो हैं ? केवल पैसे के लिए। उन्हे पैसे पर ममता न होती तो शायद देव भी उन्हे विचलित न कर सकते । पैसा ही उनका सतीत्व नष्ट कराता है । भाई-भाई और पिता-पुत्र के बीच पैसे के कारण तक. रार होती है । राजा लोग भी प्रजा के कल्याण के लिए राज्य नही चलाते, वरन् पैसे के लिए ही राज्य चलाते हैं ।
इस प्रकार पैसे के कारण होने वाले अनर्थों का विचार करने से उसके प्रति वैराग्य होगा ही। अनर्थ उत्पन्न करने वाला और राग-द्वष की वृद्धि करने वाला कनक और कामनी ही है । कनक और कामनी के कारण होने वाले अनर्थों का विचार करने से गृहस्थ को भी वैराग्य हो सकता है । इस तरह मन को वश करने के विषय मे साधु और गृहस्थ का कोई भेदभाव वाधक नही हो सकता । कोई भी क्यो न हो, अभ्यास और वैराग्य द्वारा अगर वह मन को वश करना चाहता है तो अवश्य कर सकता है ।
मन की एकाग्रता से चित्त का निरोध होता है। चित्त का निरोध तो मन की एकाग्रता का परम्परा फल है । मन की एकाग्रता का साक्षात् फल यह है कि एकाग्र मन वाला जो कुछ भी बोलता है, सत्य ही बोलता है और जो मनोरथ करता है वह पूर्ण ही होता है । मानसिक एकाग्रता से ही अमोघ भापण और मनोरथ की पूर्ति होती है । अतः मन को एकाग्र करो । मन को एकाग्र करने के लिए मैं