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पच्चीसवां बोल मानसिक एकाग्रता
शास्त्र का कथन है कि सूत्र की आराधना के लिए मन का एकान होना आवश्यक है । जब तक मन एकाग्र नही होता तब तक सूत्र की आराधना नही हो सकती। अतएव मन की एकाग्रता के विषय में भगवान् से प्रश्न किया गया है । मूलपाठ इस प्रकार है :
मूलपाठ
प्रश्न-पगग्गमणसनिवेसणयाए गं भंते ! जीव कि जणयह ? उत्तर एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं चित्तनिरोहं करेह ।
शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् ! मन को एकाग्र करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-मन को एकाग्र करने से जीव चित्त का निरोध करता है।