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चौवीसवां बोल-४५
जो श्रुत समुद्र में डुबकी मारेगा उसे तो तत्त्व रूपी मोती भी अधिकाधिक प्राप्त होंगे ।
तुमने दूसरे अनेक रो का आस्वादन किया होगा, मगर एक बार शास्त्रो के रस को भी तो चख देखो । शास्त्र का रस कैसा है ? शास्त्र का रस चखने के बाद तुम्हे ससार के सभी रस फोके जान पडेगे । शास्त्र को ऊपरऊपर से मत देखो । अगर कोई पुरुष मुह मे मोती डालकर उसका मिठाम चखना चाहे तो उसे क्या उचित कहा जायेगा? और चखने पर जिस मोती मे मिठास मालूम हो वह सच्चा है ? नही। इसी प्रकार सूत्ररूपी मोती को कार-ऊपर से मत चखो । सूत्र सुनकर उसे अपने जीवन में उतारो तो तुम्हारा मानव-जीवन सार्थक हो जायेगा । सूत्र की आराधना करने से आत्मा का कल्याण अवश्य होता है । सूत्र की आराधना करना मानव-जी-न को सार्थक करने को जडी बूटी है । अत सूत्र की आराधना करके जीवन सफल करोगे तो कल्याण होगा ।
रागादि भाव के कारण आत्मा मे किस प्रकार सक्लेश उत्पन्न होता है, यह बात सरल करके समझाता हूं । जो पुरुष जिस वस्तु को अपनी समझता है, उसे उसके प्रति राग होता है । इस अवस्था मे अगर उस वस्तु को कोई छीन ले या उसे हानि पहुचाए तो ऐसा करने वाले के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है । अगर किसी भी वस्तु को अपनी न मानी हो तो उसके प्रति राग भी न होगा और उसे छीनने या नष्ट करने वाले पर द्वेप भी न होगा। इस प्रकार रागर द्वेष न होने के कारण सक्लेश भी उत्पन्न न होगा । वस्त