________________
चौवीसा बोल-४३
व्याख्यान
शास्त्र का सम्यक प्रकार से सेवन करना श्रुत की आराधना है । वाचना, पृच्छना, परावर्त्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा, इस प्रकार पाच तरह का स्वाध्याय करने से सूत्र की आराधना होती है और सूत्र की आराधना से अज्ञान नष्ट होता है । जिस वस्तु का पहले ज्ञान नहीं होता, सूत्र की आराधना से उसका ज्ञान हो जाता है। किसी बात का ज्ञान न होना उसका अज्ञान है । सूत्र की आरावना से इस प्रकार का अज्ञान दूर हो जाता है । अज्ञान का नाश हो जाता है, इसका प्रमाण यह है कि सूत्र की आराधना से विशिष्ट बोध उत्पन्न होता है । भगवान कहते हैं- इस प्रकार की सूत्र आराधना से एक तो अज्ञान का नाश होता है और दूसरे संक्लेश उत्पन्न नही होता । तत्त्वज्ञान होने पर राग-द्वेष रूप सक्लेश टिक भी नही सकता ।
यों तो ससार असार कहलाता है पर ज्ञानीजन इस असार कहे जाने वाले ससार मे से ही सम्यक् सार खोज निकालते हैं । अगर संसार एकान्त रूप से असार होता और उसमे किंचित् भी सार न होता तो जीव मोक्ष कैसे प्राप्त कर पाते ? सूत्र की आराधना करने से अज्ञान नष्ट होता है और अज्ञान के नाश से ससार में से सार निकाला जा सकता है । इस प्रकार तत्त्व का बोध होने से किसी प्रकार का सक्लेश नही होता और सक्लेश न होने से वैराग्य की उत्पत्ति होती है । अज्ञान का नाश होना, तत्त्व का बोध होना, सक्लेश पैदा न होना और वैराग्य की उत्पत्ति होना, यह सब सूत्र की प्राराधना का ही फल है। सूत्र की आराधना