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२४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
गोते लगाता रहता है । इसी कारण ससार अपार कहलाता है । अनुप्रेक्षा से यह अपार ससार भी शीघ्रतापूर्वक पार किया जा सकता है ।
कोई मनुष्य अपार समुद्र में गिर पड़ा है। इसी बीच उसे कोई नौका मिल जाती है । नौका का मालिक समुद्र मे पडे मनुष्य से कहता है-'आ जा, जल्दी कर, इस नौका पर सवार हो जा ।' क्या समुद्र मे पडा मनुष्य ऐसे समय विलम्ब करेगा ? अगर वह मनुष्य विचारशील होगा तो इतना विचार अवश्य करेगा कि जो मनुष्य मुझे नौका पर चढने के लिए कह रहा है, वह राग-द्वेष से भरा तो नहीं है ? और मुझे किसी राग-द्वेष से प्रेरित होकर तो नौका पर चढने को नही कहता ? इस प्रकार विचार करने के बाद अगर उसे खातिरी हो जाये कि वह मनुष्य निस्पृह है और निस्पृहभाव से ही मुझे नौका पर चढने के लिए कहता है तो अगर वह बुद्धिमान् है तो नौका पर चढने मे विलम्ब नही करेगा । बुद्धिमान् मनुष्य ऐसे अवसर पर नौका का शरण लिये बिना नहीं रह सकता। इसी प्रकार यह अनादि ससार भी अपार है। इस अपार ससार को पार करने के लिए अनुप्रेक्षा नौका के समान है । ऐसी अवस्था मे ससार को पार करने के लिए अनुप्रेक्षा रूपी नौका का शरण क्यो न लिया जाये?
अनुप्रेक्षा ऐसी जोवनसाधक है, फिर भी सासारिक लोगो की दशा विचित्र ही नजर आती है । लोग दूसरे सामान्य कार्यों मे तो व्यर्थ समय नष्ट करते हैं मगर अनुप्रेक्षा रूपी नौका को नही अपनाते ।