________________
३४-सम्यक्त्वपराक्रम (३) जाते है कि उन्हे सुनकर श्रोता और अधिक मोह में पड जाते हैं । इस प्रकार मोहपोषक रासों का गाना धर्मकथा किस प्रकार कहा जा सकता है ? धर्मकथा वही है, जिसे सुनकर मोह उत्पन्न न हो, वल्कि धर्मभावना ही उत्पन्न हो । किसी भी वस्तु का सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुप योग भी हो सकता है। इसी प्रकार उपदेश द्वारा धर्मभावना पुष्ट करने वाली धर्मकथा भी कही जाती है और मोह उत्पन्न करने वाली मोहकथा भी कही जा सकती है । मगर सच्ची धर्मकथा तो वही है जो धर्मभावना को ही बढाती हो।
भगवान् से पूछा गया है कि धर्मकथा करने से किम फल की प्राप्ति होती है ? प्रत्येक कार्य की अच्छाई-बुराई का निर्णय उसके अच्छे या बुरे फल को देखकर ही किया जाता है । फल अच्छा हो तो वह कार्य भी अच्छा माना 'जाता है और यदि फल अच्छा न हो तो कर्य भी अच्छा नही माना जाता । अव यहा यह देखना है कि धर्मकया का फल कैसा मिलता है ? धमकथा का एक फल भगवन् ने निर्जरा होना बतलाया है । अत. जिससे निर्जरा हो वह धर्मत्र था है और जिससे निर्जरा न हो वह धर्मकथा भी नही है।
यहाँ निर्जरा का अभिप्राय कर्म को निर्जरा होना है। धर्मकथा से कर्मों की निर्जरा हई है या नही, इसकी पहचान विकारो का दूर होना है। अगर विकार दूर हो और चित्त को शान्ति प्राप्त हो तो समझना चाहिए कि हमने धर्मकथा की है । ऐसा न हो तो वह धर्मकथा ही नही । जिससे प्यास बुझे वही पानो है, जिसमे भूख मिटे वही भोजन है। इसी प्रकार अगर चित्त के विकार दूर हो और शान्ति प्राप्त