________________
तेईसवाँ बोल - ३७
न्याय करते समय अधेरा हो जाये तो न्यायाधीश को प्रकाश की सहायता लेनो पडती है, इसी प्रकार निर्ग्रन्थ प्रवचन तो है मगर उसे प्रकाशित करने वाले महात्मा ही हैं । जो धमकथा करता है अर्थात् धर्मदेशना देता है, उसके लिए भगवान ने कहा है कि वह प्रवचन की आराधना करता है । प्रवचन की आराधना करने वाला इस काल मे भी भद्र अर्थात् कल्याणकारी फल प्राप्त करता है और आगामी काल मे भी कल्याणकारी फल प्राप्त करता है ।
धर्मकथा करते समय धर्मोपदेशक को यह ख्याल रखना चाहिए कि धर्मकथा के द्वारा मुझे प्रवचन की सेवा करनी है । मुझे धर्मकथा को लोकरजन का साधन नही बनाना है । इसी भावना के साथ धर्मकथा करनी चाहिए ।
संयोगवश आज ज्ञानपचनी का दिन है । यह दिन ज्ञान की आराधना करने का है । शास्त्र में कहा है। पढमं नाणं तम्रो दया एबं चिट्ठइ सव्वसंजए । नाणी कि काही कि वा नाहीइ छेय पावगं ॥ दशवैकालिकसूत्र ।
अर्थात् - पहले ज्ञान की आवश्यकता है और फिर दया आवश्यक है । दया श्रेष्ठ है पर ज्ञान के बिना दया नही हो सकती । दया के लिए ज्ञान होना आवश्यक है । वही दया श्रेष्ठ है जो ज्ञानपूर्वक की जाती है । इसी प्रकार ज्ञान भी वही श्रेष्ठ है जिसमे दया का आविर्भाव होता है । ज्ञान और दया का सम्बन्ध वृक्ष और उसके फल के सबन्ध के समान है । ज्ञान वृक्ष है तो दया उसका फल है | ज्ञानरहित दया और दयारहित ज्ञान सार्थक नही है ।
1