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३०-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
क्षमावान् , इन्द्रियो का दमन करने वाला और निरास्रव पुरुष ही वीतराग के मार्ग का उपदेश दे सकता है । जो हिंसा न करता हो, असत्य भाषण न करता हो, किसी की तिनका जैसी तुच्छ चीज भी बिना आज्ञा न लेता हो, स्त्रीमात्र को माता के समान समझता हो और जो धर्मोपकरणो पर यहा तक कि अपने शरीर पर भी ममत्व न रखता हो वही व्यक्ति शुद्ध धर्म का उपदेश दे सकता है ।।
धर्म का उपदेश कौन दे सकता है, इस विषय मे भगवान महावीर का कथन बतलाया जा चुका । अव यह देखना है कि इस सम्बन्ध मे गाधीजी क्या कहते हैं ? गाधी जो ने अपने लेख मे लिखा था कि हिन्दूधर्म का उपदेश न तो बडे-बड़े विद्वान् ही दे सकते है और न शकराचार्य ही दे सकते हैं । हिन्दूधर्म का उपदेश देने का अधिकारी वही है जो हिंसा न करता हो असत्य न बोलता हो तथा जो चोरी, मैथुन और परिग्रह वगैरह दुर्गुणो से बचा हुआ हो।
इस प्रकार धर्मकथा करना अर्थात् धर्मोपदेश देना कुछ सरल काम नही है । मगर आज तो धर्मोपदेशक बोलने के लिए तत्पर ही रहते हैं, चाहे वे धर्मोपदेश देने के अधिकारी हो या न हो । शास्त्र कहता है--धर्मोपदेश देने से पहले वाचना, पृच्छना, परावर्त्तना और अनुप्रेक्षा इन चार वातो का सिद्ध कर लेना आवश्यक है। इन्हे सिद्ध कर लेने वाला ही धर्मोपदेश दे सकता है । वाचना आदि चार बातो को सिद्ध किये बिना जो उपदेश दिया जाता है वह लोगों के हृदय पर सच्चा प्रभाव डालने के बदले उल्टा असर डाल सकता है । शास्त्र मे धर्मकथा सम्बन्धी प्रश्न उक्त चार बातो