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बाईसवां बोल-२३
चार किनारे हैं । इन चार गति रूप किनारो से ससार का अन्त तो मिलता है, मगर इस ससार-ग्रटवो का मार्ग इतना लम्बा है कि जीव भ्रम के कारण भूल मे पड जाता है और इस कारण बाहर निकलना उसके लिए कठिन हो जाता है। फिर भी अनुप्रेक्षा का अवलम्वन लेकर जीव इस ससारअटवी को भी पार कर साता है ।
__मान लीजिए किसी नगर में जाने का मार्ग विकट और दुर्गम है। उस मार्ग मे, बीच-बीच मे विश्राम-स्थल बने है । ऐसी स्थिति मे एक विश्राम स्थल से दूसरे विश्रामस्थल तक, दूसरे मे तीसरे विश्राम स्थल तक, इस तरह आगे बढते जाने से विकट और दुर्गम मार्ग भी तय किया जा सकता है । लेकिन अगर मार्ग में ही भटक गये-रास्ता ही भूल गये और यही पता न चला कि अब किस ओर जाना है तो नगर मे पहुचना कठिन हो जाता है । ऐसे मनुष्य के लिए उस नगर का मार्ग विकट और दुर्गम ही है . इसी प्रकार ससार भी अपार है, यद्यपि चार गलिया उसके चार किनारे हैं और उसे पार भी किया जा सकता है । मगर जो भ्रम मे पडकर एक गति से दूसरो गति मे ही भटकता रहता है, उसके लिए ससार अपार ही है । नरक गति का भी पार आता है, मनुष्य गति का भी पार आता है । वनस्पति काय की लम्बी स्थिति होने पर भी उसका पार पा जाता है । देवगति की स्थिति का भी अन्त है । इस प्रकार देव, मनुष्य, नरक और तिर्यंच, यह चारो गतियाँ ससार के किनारे तो है लेकिन उसका मार्ग लम्बा है । इस कारण जीव फिर उसमे पड जाता है और इस प्रकार ससार मे ही