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२६-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
समझते कि अगर मेरा पुण्य प्रवल होता तो मुझे दुखी पडीसी क्यो मिलता ? अतएव यदि पडौसी दुखी है तो यह मेरा ही दोष है । तुम्हारा पुण्य और तुम्हारा पाप दूर-दूर तक काम करता है। शास्त्र में कहा है कि लवणसमुद्र की वेलाएँ सोलह हजार डगमाला के ऊपर चढती हैं। उन्हे अगर दबा न दिया जाये तो गजब हो जाये ! परन्तु बयालीस हजार देव जम्बूद्वीप की तरफ से, साठ हजार देव कपर से और बहत्तर हजार देव धातकीखड की ओर से उन समुद्र वेलाओ को दवाये रखते हैं । इस सम्बन्ध में गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया है-- हे भगवन् । क्या वह समुद्रवेला देवो के दवाने से दब जाती है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा - 'देव तो अपना कर्तव्य पालते है । वास्तव मे समुद्रवेला देवो के दबाने से दवी नही है । समुद्रवेला तो जम्बूदीप और धातकीखड में रहने वाले अरिहंतो, चक्रवत्तियो, वासुदेवो, बलदेवो, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका एव सम्यग्दृष्टि जीवो के पुण्य-कार्य से दवी रहती है।' इस प्रकार तुम्हारा पुण्य वहां भी कार्य कर रहा है । अतएव मानना चाहिए कि मेरी पुण्यकरणी के फल का प्रभाव दूसरी जगह और दूसरो पर भी पड़ता है । इसलिए मुझे खराव काम नहीं करना चाहिए, अच्छी करणी करते रहना चाहिए। मुझे दूसरो के दोष न देखकर अपने ही दोष देखना चाहिए,
और दूसरो की निन्दा का त्याग करके अनुप्रेक्षा करना, जिससे इस विकट ससार-अटवी का अन्त किया जा सके । ।
__ अगर कोई व्यक्ति शास्त्र की अनुप्रेक्षा कर सके तव तो अच्छी ही है, लेकिन जो शास्त्र नही जानते उन्हे पर