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बोल १८ वां पृष्ठ ३७ से ४० तक
शकडाल पुत्रने देवता के कहनेसे भगवान् महावीर स्वामीको वन्दन नमस्कार किया था और सुमुख गाथापतिने अपनो इच्छासे सुदत्त अनगारको बन्दन नमस्कार किये थे इस लिये इन दोनोंके बन्दन नमस्कार एक समान नहीं थे । बोल १९ व पृष्ठ ४० से ४२ तक
विशिष्ट क्रियावादी मनुष्य और तिर्य्यच एक वैमानिक की सभी क्रियावादी नहीं । सामान्य क्रियावादी नरक योनिकी आयु भी श्रुत स्कन्ध सूत्र |
विराधक श्रावक क्रियावादी होने पर भी जघन्य भुवनवासी और उत्कृष्ट ज्योति - कमें उत्पन्न होता है । प्रमाण भगवती शतक १ उद्देश २ |
ही आयु बांधते हैं बांधता है । दशा
वोल २० वां पृष्ठ ४२ से ४३ तक
भगवती शतक ८ उद्देशा दशकी टीकामें चारित्र रहिन ज्ञान दर्शन और देश की आराधनासे उत्कृष्ट असंख्य भव होना कहा है। जोतमलजीने भी इसे माना है । बोल २१ वां पृष्ठ ४३ ४४ तक
उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ७ गाथा २० में सम्यग्दृष्टि को "सुत्रा" कहा है मिथ्यादृष्टिको नहीं ।
बोल २२ वां पृष्ट ४५ से ४७ तक
नागत्याका प्रियवाल मित्र सामान्य त्राधारी होकर भी मनुष्य योनिमें जन्म पाश था । भगवती शतक ७ उद्देशा ९
बोल २३ वां पृष्ठ ४७ से ४९ तक
मास मासक्षमण रूप घोर तपस्या करने वाला मिथ्यादृष्टि, जिन भाषित धर्मका आचरण करने वाले पुरुषके सोलहवें अंशमें भी नहीं है। उत्तराध्ययन स० ९ गाथा ४४ बोल २४ नं पृष्ठ ४९ से ५१ रुक
मिथ्यादृष्टि ( अज्ञानी ) माख मास पर्य्यन्त उपवास करके उसके अन्त में पारणा करता हुआ भो जन्म मरण के चक्कर से नहीं छूटता । सुयगडांग श्रुत स्कन्ध १ अ० २ 'उद्देशा १ गाथा ९ )
बोल २५ वां पृष्ठ ५१ से ५३ तक
जिसको जीवाजीव दि पदार्थका ज्ञान नहीं है उसका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है। ( भगवती शतक ७ उद्देशा २ )
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