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अनुक्रमणिका ।
- मिथ्यात्वि क्रियाधिकारः।
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बोल १ पृष्ठ १ से ७ तक धर्म दो तरहका है-एक श्रुत और दूसरा चारित्र । इन्हींका भागधक वीतगग की आज्ञाका आराधक है अज्ञानी मिथ्यादृष्टि नहीं।
बोल दूसरा पृष्ठ ७ से नौ तक ... मिथ्यादृष्टि अज्ञानीको अज्ञानपूर्वक की जाने वाली अछाम निर्जरा आदिको क्रिया वीतरागकी आज्ञामें नहीं है।
बोल तीसरा पृष्ट १० से ११ तक ___अकाम निर्जराको धर्मका भेद ठहरानेके लिये धर्मका दो भेद संवर और निर्जरा बताना शास्त्र विरुद्ध है।
बोल चौथा पृष्ठ ११ से १३ तक ... . धम्मो संगल मुक्कि? इस गाथामें कहा हुआ तप, चारित्रका हो भेद है चारित्ररहित मिथ्यादृष्टिका तप नहीं है ।
बोल ५ वां १३ से १७ तक भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशा १० की चतुर्भगीके प्रथम भङ्गका स्वामी देश गधक चारित्री पुरुष है मिथ्यादृष्टि अज्ञानी नहीं है।
बोल छट्ठा पृ० १७ से १८ तक संवर रहित निर्जराकी करनी करने वाले मिथ्यादृष्टिको उवाईसूत्रमें जिन माशा का अनाराधक कहा है।
वोल सातवां पृष्ठ १९ से २१ तक ____ असंक्लिष्ट परिणामसे हाडी वन्धनादिका दुःख सहने वाले जो बारह हजार वर्ष की आयुके देवता होते हैं वे उवाई सूत्रमें वीतरागकी आज्ञाके अनाराधक कहे गये हैं।
बोल आठ पृष्ठ २५ से २२ तक जो जीव, अज्ञानी तथा मिथ्यादृष्टि हैं, परन्तु माता पिताकी सेवासे चौदह हजार की आयुके देवता होते हैं वे उवाई सूत्रमें मोक्ष मार्गके मनाराधक कहे गये हैं।
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