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बोल ९ वां पृष्ठ २२ से २३ तक अकाम ब्रह्मचर्य पारन करके चौसठ हजार वर्षकी आयुके देवता होने वाली अज्ञानी मिथ्यादृष्टि स्त्री वीतरागकी आज्ञाकी आराधिका नहीं है।
बोल दशवां पृष्ठ २३ से २५ तक ___ अन्न जल आदिका नियम रख कर चौरासी हजार वर्षकी आयुके देवता होने वाले अज्ञानी तागस मोक्ष मार्गके आगधक नहीं हैं।
बोल ११ वां पृष्ठ २५ से २६ तक कन्द मूल फलादिका माहार करने वाले पञ्चाग्नि सेवी अज्ञानी तापस जो एक पल्योपम और एक लाख वर्षको आयुके देवता होते हैं वे परलोकके आराधक नहीं हैं।
बोल १२ वां पृष्ठ २६ से २७ तक संवर रहित निर्जराको क्रिया मोझ मागेके आराधनमें नहीं है।
बोल १३ वा पृष्ठ २७ से २९ तक भगवती शतक ८ उद्देशा १० की चतुर्भगीके प्रथम भङ्गका स्वामी देशाराधक पुरुष पापसे सवथा हटा हुआ चारित्री है और उवाई सूत्रोक्त मोक्ष मार्गका अनाराधक पुरुष पापसे सर्वथा नहीं हटा हुआ मिथ्याष्टि है अतः ये दोनों भिन्न भिन्न हैं एक नहीं हैं। अकाम निर्जराकी करनो मोक्षमार्गमें नहीं है इसलिये उवाई सूत्रमें अकाम निर्जराकी करनी करने वालेको परलोकका अनागधक कहा है।
बोल १४ वां पृष्ठ ३० से ३२ तक तामली तापस और पूरण तापस सम्यक्त्व पानेके पहले शास्त्रमें मोक्ष मागके आराधक नहीं कहे गये हैं। दूसरी जगह खुद जीतमलजीने अज्ञान दशाकी क्रियासे मोक्ष मार्गका आराधन न होना बतलाया है।
बोल १५ वां पृष्ठ ३२ से ३५ तक सुदत्त अनगारको भिक्षा देते समय सुमुख गाथापति सम्यग्दृष्टि था मिथ्यादृष्टि नहीं । अनन्तानुवन्धी क्रोधादिके नाश हुए बिना संसार परिमित नहीं होता और सम्यक्त्व पाये बिना अनन्तानुवन्धी क्रोधादिका नाश नहीं होता।
बोल १६ वां पृष्ठ ३५ से ३६ तक __ मेघकुमार का जीव हाथीके भवमें शशकादि प्राणियों की रक्षा करते समय सम्यकद्दष्टि था मिथ्यादृष्ट नहीं।
बोल १७ वां पृष्ठ ३६ से ३७ तक दौलतगमजी और दलपति रायजी की प्रश्नोत्तरीमें हाथी तथा सुमुख गाथापति को मिथ्यादृष्टि नहीं कहा है।
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