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६४. विसल्ला आगमणपव्व
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तो भाइ नणयतणओ, एयं ण्हाणोदयं विसल्लाए । अम्हं देहि महायस !, मा वक्खेवं कुणसु एत्तो ॥ एएण सित्तमेत्तो, नीवइ लच्छीहरो निरुत्तेणं । वच्चामो तेण लहुं, मरइ पुणो उग्गए सूरे ॥ भरहेण वि सो भणिओ, किं गहणं पाणिएण एएणं ? । सयमेव सा विसल्ला, जाउ तहिं दोणमेहसुया ॥ आइट्टं चिय मुणिणा, जह एसा तस्स पढमकल्लाणी । होही महिलारयणं, न चेव अन्नस्स पुरिसस्स ॥ दोणघणस्स सयासं, भरहेण य पेसिओ तओ दूओ । न य देइ सो विसलं, सन्नद्धो पुत्तबलसहिओ ॥ सो केगईए गन्तुं, पबोहिओ सुमहुरेहि वयणेहिं । ताहे परितुट्टमणो, दोणो धूयं विसज्जेइ भामण्डलेण तो सा, आरुहिया अत्तणो वरविमाणे । कन्नाण सहस्सेणं, सहिया य नरिन्दधूयाणं ॥ उप्पइऊण गया ते, सिग्धं संगाममेइणी सुहडा । अग्घाइकयाडोवा, अवइण्णा वरविमाणा णं ॥ सा वि य तहिं विसल्ला, सुललियसियचामरेहि विज्जन्ती । हंसीव संचरन्ती, संपत्ता लक्खणसमीवं ॥ सातीए फुसियसन्ती, सत्ती वच्छत्थलाउ निष्फिडिया । कामुयघरस्स नज्जइ, पदुट्टमहिला इव पणट्टा ॥ विप्फुरियाणलनिवहा, सा सत्ती नहयलेण वच्चन्ती । हणुवेण समुप्पइउं, गहिया अइवेगवन्तेणं ॥ अमोघविजयाशक्तिः -
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अह सा खणेण नाया, वरमहिला दिवरूवसंपन्ना । भणइ तओ हणुयन्तं, मुञ्चसु मं नत्थि मे दोसो ॥ सत्ती अमोहविनया, नामेण अहं तिलोगविक्खाया । लङ्काहिवस्स दिन्ना, तुट्टेणं नागराएणं ॥ कइलासपबओवरि, तइया वालिस्स जोगजुत्तस्स । उक्कत्तेऊण भुया, कया य वीणा दहमुहेणं ॥ चेइयघराण पुरओ, निणचरियं तत्थ गायमाणस्स । परितोसिएण दिन्ना, धरणेण अहं दहमुहस्स ॥ २९ ॥ साहं न केणइ पहू !, पुरिसेणं निज्जिया तिहुयणम्मि । मोत्तूण विसल्ले वि हु, दुस्सहतेयं गुणकरालं ॥ ३० ॥ एयाऍ अन्नजम्मे, घोरं समुवज्जियं तवोकम्मं । असण- तिसा सीया SSयवसरीरपीडं सहन्तीए ॥ ३१ ॥
इससे सिक्त होते ही लक्ष्मण अवश्य जी उठेंगे । इसलिए हम भरतने भी उसे कहा कि इस जलका तो लेना ही क्या, मुनिने कहा है कि यह महिलारत्न उसकी पटरानी होगी, दूसरे पुत्र एवं सेनाके साथ तैयार उसने विशल्या न दी । (१६)
स्नानोदक आप हमें दें। आप इसमें देरी न करें । (१५) जल्दी ही जायँ । सूर्योदय होने पर तो वह मर जायेंगे । (१६) द्रोणमेघकी पुत्री वह विशल्या स्वयं ही वहाँ जाय । (१७) पुरुषकी नहीं । (१८) द्रोणमेघके पास तब भरतने दूत भेजा । कैकईने जाकर अत्यन्त मीठे वचनोंसे उसे समझाया। तब मनमें प्रसन्न हो द्रोणने लड़कीको भेजा । (२०) उसके बाद भामण्डलने राजाओं की एक हजार कन्याओंसे युक्त उसे अपने उत्तम विमानमें बिठाया । (२१) उड़ करके वे सुभट शीघ्र ही संग्रामभूमि पर गये । उत्तम विमानों की अर्ध्य दिसे पूजा करके वे नीचे उतरे । (२२) सुन्दर चँवर जिसे डोले जाते हैं ऐसी विशल्या भी हंसी की भाँति गमन करती हुई लक्ष्मणके पास पहुँची । (२३) उसके द्वारा छूए जाने पर वह शक्ति वक्षस्थल से बाहर निकली। उस समय वह कामी पुरुषके घरमेंसे निकलनेवाली दुष्ट महिलाकी भाँति ज्ञात होती थी । (२४) आकाश मार्ग से जानेवाली उस विस्फुरित अग्निसमूहसे युक्त शक्तिको अतिवेगवाले हनुमानने कूदकर पकड़ लिया । (२५)
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वह शक्ति क्षणभर में दिव्यरूपसम्पन्न एक सुन्दर स्त्री हो गई । इसके पश्चात् उसने हनुमानसे कहा कि तुम मुझे छोड़ दो। इसमें मेरा दोष नहीं है । (२६) मैं त्रिलोकमें विख्यात अमोघविजया नामकी शक्ति हूँ । तुष्ट नागराज द्वारा लंकेश रावणको मैं दी गई थी । (२७) पहले जब बालि कैलास पर्वतके ऊपर योगयुक्त था तव रावणने गान करनेवाले रावणको प्रसन्न भुजाको चीरकर वीणा बनाई थी । (२८) वहाँ चैत्यगृहोंके समक्ष जिनचरितका धरणेन्द्र देवके द्वारा मैं दी गई थी । (२६) हे प्रभो ! दुस्सह तेजवाली तथा गुणोंके कारण उन्नत ऐसी विशल्या को छोड़कर मैं त्रिभुवनमें किसी पुरुष द्वारा जीती नहीं गई हूँ । (३०) भूख, प्यास, शीत एवं आतप तथा शरीरपीड़ा सहन करनेवाली उसने पूर्वजन्म में घोर तप करनेसे उत्पन्न होनेवाला कर्म अर्जित किया था । (३१) हे सुपुरुष ! परभवमें सम्यकू
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